काव्याभिव्यक्ति

आत्म - साक्षात्कार 

अहं की गहराईयों  में 
मै उतरता ही गया ...
स्व के अस्तित्व बोध को ,
मै खोजने निकल निकल पड़ा ...


कौन हूँ मै , किस लिए हूँ ;
प्रश्न करता ही गया ...
परत दर परत कई परतें ,
मै खोलता ही चला !


यही पहला आत्म- साक्षात्कार था 
सूक्ष्म से स्थूल का वह मिलन साकार था 
स्व को प्रकाशित करने का यह एक प्रकार था 
खुद को पहचानने का यही एक आधार था !


आत्मिक आनंद में जितना डूब जाओगे 
गहरे समुन्दर में जितने गोते लगाओगे 
अन्दर औ' अन्दर बढ़ते ही चले जाओगे 
अँधेरे को चीरकर , खुद को जो बढाओगे 
भेद सभी खुलकर प्रकट होंगे तुम्हे 
अहं से ब्रह्म तक सब कुछ जान पाओगे !!








आकृति 

वह आकृति नयनाभिराम 
रहस्यमय, आभामय, अदभुत, तेजस्वी, प्रकाशमान !

वह प्रतिमा सुन्दरता की मूरत 
निहारता अपलक , हो हतप्रभ 
था चकित, था हैरान ;
विचारो से परे , इस दुनिया से अनजान 
वह आकृति थी नयनाभिराम !

हुई तभी कुछ खटर - पटर 
में जागा , निद्रा गहरी थी 
स्वपन खोल तोडा जो निकला ..
मेरे मानस पर अंकित थे ,
अब भी उसके निशान 
वह आकृति थी नयनाभिराम !!






बिलखता बचपन 

वो देखो बैठा है एक रोता बिलखता बच्चा...
चीथडो में सहमा सा ,भूख से लाचार वो ,
टुकड़ा -टुकड़ा बिखरते उसके पल - पल विचार, वो ....धुल -मिटटी से लबरेज ,कितना परेशान हो बैठा है ,उन मासूम आँखों को कैसे चट्टान बनाए बैठा है !बेबसी की ये दुनिया भी उसकी कितनी गरीब है उसके सपने तो देखो कितने अजीब है ...रात के लिए रोटी ..और एक कम्बल - ठण्ड का सामान चाहिए ;बीमार माँ की दवाईयां ..बस इतना ही मुकाम चाहिए !!उसका मासूम बचपन तो उसी समय छील गया जब उसके बाप को ,काल युहीं अकाल लील गयाअब तो बस ज़िन्दगी में काले बादलो के घेरे है समय समय पर परीक्षा लेते समय के थपेड़े है ..डर है कहीं ..ठोस धरातल और उसपे बसती जमीनी सच्चाई उसका नाज़ुक बचपन ना तोड़ दे उसकी जिजीविषा को कहीं अपनी उबड़ खाबड़ सतह से ना मरोड़ दे अगर ऐसा हुआ ... तो फिर एक बचपन खुद से रूठ जाएगा और - एक और घडा बनने से पहले ही टूट जाएगा !!वो देखो - दूर कोने में बैठा है एक रोता बिलखता बच्चा....



















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